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ग़ज़ल
मिटाएँ ताकि अपने ज़ुल्म करने की नदामत को
निकालें ढूँड कर हर तरह से पहलू शिकायत का
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
मिटाएँ कैसे ये दाग़-ए-हसरत समेटें कैसे गुल-ए-जराहत
हटाएँ कैसे ये भारी पत्थर यही है अब ज़िंदगी हमारी
ज़ाहिदा ज़ैदी
ग़ज़ल
निशान-ए-पा-ए-अदू ने मारा कि तेरे दर पर नहीं गवारा
झुके जो सज्दे को सर हमारा मिटाएँ लिक्खा हुआ जबीं का
क़ुर्बान अली सालिक बेग
ग़ज़ल
मिटाएँ सब्र दिल से सब्र की तल्क़ीन फ़रमाएँ
सुकून-ए-दिल वही छीनें वही तस्कीन फ़रमाएँ
ज़हीन शाह ताजी
ग़ज़ल
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
इस शहर में किस से मिलें हम से तो छूटीं महफ़िलें
हर शख़्स तेरा नाम ले हर शख़्स दीवाना तिरा