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ग़ज़ल
क़यामत देखने के शौक़ में हम मर मिटे तुम पर
क़यामत करने वालो अब क़यामत क्यूँ नहीं करते
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
कोशिशें मुझ को मिटाने की भले हों कामयाब
मिटते मिटते भी मैं मिटने का मज़ा ले जाऊँगा
कुमार विश्वास
ग़ज़ल
मिटते मिटते दे गए हम ज़िंदगी को रंग-ओ-नूर
रफ़्ता रफ़्ता बन गए इस अहद का अफ़्साना हम
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
मिटते हुओं को देख के क्यूँ रो न दें 'मजाज़'
आख़िर किसी के हम भी मिटाए हुए तो हैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
मुझे तो कर दिया सैराब साक़ी ने मिरे लेकिन
मिरी सैराबियों की तिश्ना-सामानी नहीं जाती