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ग़ज़ल
मैं इक छोटा सा अफ़सर हूँ वो इक मोटा सा ''मिल-ओनर''
मगर दोनों के इन्कम गोश्वारे एक जैसे हैं
सरफ़राज़ शाहिद
ग़ज़ल
इतना माल कहाँ कि दुकाँ बाज़ार-ए-मोहब्बत में ले पाएँ
छोटा-मोटा कारोबार-ए-तह-बाज़ारी कर लेते हैं
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
ख़ौफ़ इक दिल में समाया लरज़ उट्ठा काग़ज़
काँपते हाथों से ज़ालिम ने जो मोड़ा काग़ज़
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
आँसू तो बहुत से हैं आँखों में 'जिगर' लेकिन
बंध जाए सो मोती है रह जाए सो दाना है