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ग़ज़ल
मयस्सर आ चुकी है सर-बुलंदी मुड़ के क्यूँ देखें
इमामत मिल गई हम को तो उम्मत छोड़ दी हम ने
शहज़ाद अहमद
ग़ज़ल
ख़िलाफ़-ए-मा'मूल मूड अच्छा है आज मेरा मैं कह रही हूँ
कि फिर कभी मुझ से करते रहना ये भाव-ताव मुझे मनाओ
आमिर अमीर
ग़ज़ल
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
लोगो मेरे साथ चलो तुम जो कुछ है वो आगे है
पीछे मुड़ कर देखने वाला पत्थर का हो जाएगा
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
जूँही मुड़ कर देखा मैं ने बीच उठी थी इक दीवार
बस यूँ समझो मेरे ऊपर बिजली सी इक बार गिरी
जौन एलिया
ग़ज़ल
मुझ से जब तर्क-ए-तअल्लुक़ का किया अहद तो फिर
मुड़ के मेरी ही तरफ़ आप ने देखा कैसे