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ग़ज़ल
ख़िज़ाँ से पेशतर सारा चमन बर्बाद होता है
ग़ज़ब होता है जब ख़ुद बाग़बाँ सय्याद होता है
तिलोकचंद महरूम
ग़ज़ल
कँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
ग़ज़ल
न गुल से काम है हम को न कुछ गुलज़ार से मतलब
ब-जाँ रखते हैं इक हमदम बदल इक यार से मतलब
मरदान सफ़ी
ग़ज़ल
कुछ तिरे नाज़-ओ-सितम और उठाना चाहे
दिल मिरा अक़्ल से फिर आँख चुराना चाहे
सय्यद इक़बाल रिज़वी शारिब
ग़ज़ल
फ़ुग़ान-ओ-आह से पैदा किया दर्द-ए-जुदाई को
ग़ज़ब में जान को डाला जता कर आश्नाई को