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ग़ज़ल
कई मील रेत को काट कर कोई मौज फूल खिला गई
कोई पेड़ प्यास से मर रहा है नदी के पास खड़ा हुआ
बशीर बद्र
ग़ज़ल
उस ने पेड़ से कूद के जाने कितने ग़ोते खाए
बंदर को जब लगा नदी में गिरा हुआ है चाँद