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ग़ज़ल
वफ़ा-ए-वादा नहीं वादा-ए-दिगर भी नहीं
वो मुझ से रूठे तो थे लेकिन इस क़दर भी नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
सितम सिखलाएगा रस्म-ए-वफ़ा ऐसे नहीं होता
सनम दिखलाएँगे राह-ए-ख़ुदा ऐसे नहीं होता
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
वो अहद-ए-ग़म की काहिश-हा-ए-बे-हासिल को क्या समझे
जो उन की मुख़्तसर रूदाद भी सब्र-आज़मा समझे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
सब क़त्ल हो के तेरे मुक़ाबिल से आए हैं
हम लोग सुर्ख़-रू हैं कि मंज़िल से आए हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
अब वही हर्फ़-ए-जुनूँ सब की ज़बाँ ठहरी है
जो भी चल निकली है वो बात कहाँ ठहरी है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
'फ़ैज़' उन को है तक़ाज़ा-ए-वफ़ा हम से जिन्हें
आश्ना के नाम से प्यारा है बेगाने का नाम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
कुछ दिन से इंतिज़ार-ए-सवाल-ए-दिगर में है
वो मुज़्महिल हया जो किसी की नज़र में है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
कब तक दिल की ख़ैर मनाएँ कब तक रह दिखलाओगे
कब तक चैन की मोहलत दोगे कब तक याद न आओगे