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ग़ज़ल
मैं हैरत ओ हसरत का मारा ख़ामोश खड़ा हूँ साहिल पर
दरिया-ए-मोहब्बत कहता है आ कुछ भी नहीं पायाब हैं हम
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
ज़रा सी गर्द-ए-हवस दिल पे लाज़मी है 'फ़राज़'
वो इश्क़ क्या है जो दामन को पाक चाहता है
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
ज़मीर-ए-पाक ओ निगाह-ए-बुलंद ओ मस्ती-ए-शौक़
न माल-ओ-दौलत-ए-क़ारूँ न फ़िक्र-ए-अफ़लातूँ
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
उसे पाक नज़रों से चूमना भी इबादतों में शुमार है
कोई फूल लाख क़रीब हो कभी मैं ने उस को छुआ नहीं
बशीर बद्र
ग़ज़ल
ख़ुदा के पाक बंदों को हुकूमत में ग़ुलामी में
ज़िरह कोई अगर महफ़ूज़ रखती है तो इस्तिग़्ना