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ग़ज़ल
पाँव की ताक़त ताक़ हुई तो बंद की आँख और जा पहुँचे
'आरज़ू' उस को ख़ूब किया कम रास्ते में जो तूल पड़ा
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
हम को ठुकराते चलें आप की महफ़िल में अदू
क्या उन्हें कम नज़र आता है या कम देखते हैं
सफ़ी औरंगाबादी
ग़ज़ल
'आरज़ू' मेरी ज़ीस्त अब तिश्ना-ए-ईन-ओ-आँ नहीं
मेरा गुज़र है आज-कल यार की बज़्म-ए-नाज़ में