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ग़ज़ल
गरचे है तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल पर्दा-दार-ए-राज़-ए-इश्क़
पर हम ऐसे खोए जाते हैं कि वो पा जाए है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मोहब्बत ख़ुद ही अपनी पर्दा-दार-ए-राज़ होती है
जो दिल पर चोट लगती है वो बे-आवाज़ होती है
विशनू कुमार शाैक़
ग़ज़ल
छुपाऊँ लाख राज़-ए-'इश्क़ इफ़्शा हो ही जाता है
मिरी आँखों से इक तूफ़ाँ पैदा हो ही जाता है
अफ़ज़ल पेशावरी
ग़ज़ल
राज़-ओ-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल बना दिया
उन की नज़र ने दिल को मिरे दिल बना दिया
सय्यद सफ़दर हुसैन
ग़ज़ल
दिल खोटा है हम को उस से राज़-ए-इश्क़ न कहना था
घर का भेदी लंका ढाए इतना समझे रहना था
शौक़ क़िदवाई
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
नहीं तर्जुमान-ए-बयाँ कोई जो है पर्दा-दार-ए-सुकूत है
हैं ये दाग़ दाग़ इबारतें बड़े एहतिमाल के दरमियाँ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
ऐ 'राज़' दर्द-ए-इश्क़ को दिल में बसाएँगे
कुछ अपनी ज़िंदगी में इज़ाफ़ा करेंगे हम
बशीरुद्दीन राज़
ग़ज़ल
वो समझता है उसे जो राज़-दार-ए-नग़्मा है
आह कहते हैं जिसे सिर्फ़ इक शरार-ए-नग़्मा है
नाज़िश प्रतापगढ़ी
ग़ज़ल
जल्वा पाबंद-ए-नज़र भी है नज़र-साज़ भी है
पर्दा-ए-राज़ भी है पर्दा-दर-ए-राज़ भी है