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ग़ज़ल
इक इम्तिहान-ए-वफ़ा है ये उम्र भर का अज़ाब
खड़ा न रहता अगर ज़लज़लों में क्या करता
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
'बिस्मिल' हरीम-ए-हुस्न में हैं काम-याब-ए-शौक़
जोश-ए-शबाब ओ रंग-ए-रुख़-ए-आतिशीं से हम
बिस्मिल सईदी
ग़ज़ल
ज़िंदगी के ख़ाका-ए-सादा को रंगीं कर दिया
हुस्न काम आए न आए इश्क़ काम आ ही गया