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ग़ज़ल
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
शाम हुई फिर जोश-ए-क़दह ने बज़्म-ए-हरीफ़ाँ रौशन की
घर को आग लगाएँ हम भी रौशन अपनी रात करें
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
वही बात जो वो न कह सके मिरे शेर-ओ-नग़्मा में आ गई
वही लब न मैं जिन्हें छू सका क़दह-ए-शराब में ढल गए
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
हुआ विसाल से शौक़-ए-दिल-ए-हरीस ज़ियादा
लब-ए-क़दह पे कफ़-ए-बादा जोश-ए-तिश्ना-लबी है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
वही बात जो वो न कह सके मिरे शेर-ओ-नग़्मा में आ गई
वही लब न मैं जिन्हें छू सका क़दह-ए-शराब में ढल गए
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
मुझे क्यूँ न आवे साक़ी नज़र आफ़्ताब उल्टा
कि पड़ा है आज ख़ुम में क़दह-ए-शराब उल्टा