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ग़ज़ल
ये जो सुना इक दिन वो हवेली यकसर बे-आसार गिरी
हम जब भी साए में बैठे दिल पर इक दीवार गिरी
जौन एलिया
ग़ज़ल
गुहर को जौहरी सर्राफ़ ज़र को देखते हैं
बशर के हैं जो मुबस्सिर बशर को देखते हैं
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
है ग़लत-फ़हमी हवा की उस से डर जाता हूँ मैं
हौसला बन कर चराग़ों में उतर जाता हूँ मैं