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ग़ज़ल
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
मैं दिल की क़द्र क्यूँ न करूँ हिज्र-ए-यार में
उन की सी शोख़ियाँ हैं इसी बे-क़रार में
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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मैं दिल की क़द्र क्यूँ न करूँ हिज्र-ए-यार में
उन की सी शोख़ियाँ हैं इसी बे-क़रार में