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ग़ज़ल
ज़माने की नई बातों में शामिल ये भी है ज़ाहिद
कि रहन-ए-मय तुम्हारा जुब्बा-ओ-दस्तार हो जाना
हामिद हुसैन हामिद
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
मिरी हमसरी का ख़याल क्या मिरी हम-रही का सवाल क्या
रह-ए-इश्क़ का कोई राह-रौ मिरी गर्द को भी न पा सका
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
ख़ुद अहल-ए-ख़िरद छोड़ गए राह-ए-वफ़ा को
हम अहल-ए-जुनूँ साहिब-ए-किरदार रहे हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
मिरा माज़ी नज़र आया मुझे हाल-ए-हसीं हो कर
जो उन के साथ देखे थे वो मंज़र याद आते हैं
ए. डी. अज़हर
ग़ज़ल
मर चुका मैं तो नहीं उस से मुझे कुछ हासिल
बरसे गर पानी की जा आब-ए-बक़ा मेरे ब'अद