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ग़ज़ल
टोकता तो मैं नहीं पर इन दिनों नाम-ए-ख़ुदा
ख़ूब चमके हो तुम्हारा रंग-ए-रू कुछ और है
मीर शेर अली अफ़्सोस
ग़ज़ल
किसी तौर हो न पिन्हाँ तिरा रंग-ए-रू-सियाही
वो सब आँखें बुझ चुकी हैं कि जो दें मिरी गवाही
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
मन में जोत जगाने वाले त्याग गए ये डेरा जोगी
उत्तर दक्खिन पूरब पच्छिम चारों ओर अंधेरा जोगी
बिमल कृष्ण अश्क
ग़ज़ल
उबल पड़ा यक-ब-यक समुंदर तो मैं ने देखा
खुला जो राज़-ए-सुकूत लब पर तो मैं ने देखा