मन में जोत जगाने वाले त्याग गए ये डेरा जोगी
मन में जोत जगाने वाले त्याग गए ये डेरा जोगी
उत्तर दक्खिन पूरब पच्छिम चारों ओर अंधेरा जोगी
द्वारे द्वारे अलख जगाने को तो सारी 'उम्र पड़ी है
सेज सजी दो चार घड़ी को कर ले रैन बसेरा जोगी
इस घर में इक कोरा आँचल रोते रोते भीग चला है
भूले ही से सही कभी तो मार इधर भी फेरा जोगी
अपने मन में चोर छुपा हो तो फिर दोष किसी का क्या है
वो ही राह-रौ वो ही रह-ज़न अपना आप लुटेरा जोगी
पल-दो-पल रुक पहन गेरुए कपड़े हम भी साथ चलेंगे
मार चली रस-भरी जवानी जोगी वाला फेरा जोगी
पाँव पाँव मुड़ती पगडंडी आँख झपकते डस लेती है
जीवन की नागिन किस के बस इस का कौन सपेरा जोगी
तू जो कहे तो उन ज़ुल्फ़ों की नर्म छाओं हमराह ले चलें
जंगल में काले बादल का साया बहुत घनेरा जोगी
ये भभूत किस की पलकों किस के बालों की परछाईं है
तेरे साफ़ सपेद जिस्म पर किस ने रंग बिखेरा जोगी
कान में कुंडल कड़ा हाथ में लम्बे बाल घूँघरूं वाले
तेरे तन के चार छपेरे किस जोगन का घेरा जोगी
जिस ने मुझ को घर बख़्शा है और आवारा-गर्दी तुझ को
उस की राहगुज़र किस घर से किस रस्ते पर डेरा जोगी
हर रुख़ पर परछाईं किसी की हर चेहरे पर 'अक्स किसी का
चलते फिरते बाज़ारों में क्या तेरा क्या मेरा जोगी
इस बस्ती में 'अश्क' किसी इक लड़के को कुंडल पहना कर
इक लड़की ने ये कह कर बर्बाद किया तू मेरा जोगी
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