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ग़ज़ल
गो मुब्तला-ए-गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर हूँ मैं
फिर भी दयार-ए-इश्क़ में चीज़-ए-दिगर हूँ मैं
ज़ाहिद चौधरी
ग़ज़ल
ख़ुद ख़त्म कर के क़िस्सा-ए-शाम-ओ-सहर को मैं
ये भी पता नहीं कि चला हूँ किधर को मैं
डॉ. फ़ौक़ करीमी
ग़ज़ल
हज़ार गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर से गुज़रे हैं
वो क़ाफ़िले जो तिरी रहगुज़र से गुज़रे हैं
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
निकल के हल्क़ा-ए-शाम-ओ-सहर से जाएँ कहीं
ज़मीं के साथ न मिल जाएँ ये ख़लाएँ कहीं
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
पल पल जीने की ख़्वाहिश में कर्ब-ए-शाम-ओ-सहर माँगा
सब थे नशात-ए-नफ़ा के पीछे हम ने रंज-ए-ज़रर माँगा