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ग़ज़ल
जो हम आए तो बोतल क्यूँ अलग पीर-ए-मुग़ाँ रख दी
पुरानी दोस्ती भी ताक़ पर ऐ मेहरबाँ रख दी
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
फ़रियाद-ए-जुनूँ और है बुलबुल की फ़ुग़ाँ और
सहरा की ज़बाँ और है गुलशन की ज़बाँ और
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
बहुत ही पर्दे में इज़हार-ए-आरज़ू करते
निगाहें कहती हैं हम उन से गुफ़्तुगू करते
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
मुझ को लेना है तिरे रंग-ए-हिना का बोसा
दस्त-ए-रंगीं का मिले या कफ़-ए-पा का बोसा
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
ये कहाँ लगी ये कहाँ लगी जो क़फ़स से शोर-ए-फ़ुग़ाँ उठा
जले आशियाने कुछ इस तरह कि हर एक दिल से धुआँ उठा
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
मैं समझा जब झलकता सामने जाम-ए-शराब आया
मिरा मुँह चूमने शायद मिरा मस्त-ए-शबाब आया
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
इस इश्क़-ए-जुनूँ-ख़ेज़ में क्या क्या नहीं होता
दीवाना है जो क़ैस से लैला नहीं होता
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
हंगाम-ए-नज़्अ' गिर्या यहाँ बे-कसी का था
तुम हँस पड़े ये कौन सा मौक़ा हँसी का था
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
सुब्ह-ए-महशर भी गवारा नहीं फ़ुर्क़त मेरी
मुझ से रह रह के लिपट जाती है तुर्बत में