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ग़ज़ल
किस किस अपनी कल को रोवे हिज्राँ में बेकल उस का
ख़्वाब गई है ताब गई है चैन गया आराम गया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
ऐ रब इरफ़ाँ के दर्पन को न रोवे जौहर-ए-ख़्वाहिश
हवस की मौज अल्मास-ए-सफ़ा-ए-दिल को लक्का है
वली उज़लत
ग़ज़ल
जाम दे साक़ी नौ 'उज़लत' को कि जाती है बहार
रोवे है फ़स्ल-ए-गुल-ओ-अब्र-ए-बहाराँ मुझ को
वली उज़लत
ग़ज़ल
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
एक तो इतना हब्स है फिर मैं साँसें रोके बैठा हूँ
वीरानी ने झाड़ू दे के घर में धूल उड़ाई है
जौन एलिया
ग़ज़ल
इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया
वर्ना क्या बात थी किस बात ने रोने न दिया