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ग़ज़ल
अब तो उस के बारे में तुम जो चाहो वो कह डालो
वो अंगड़ाई मेरे कमरे तक तो बड़ी रूहानी थी
जौन एलिया
ग़ज़ल
दिल किए तस्ख़ीर बख़्शा फ़ैज़-ए-रूहानी मुझे
हुब्ब-ए-क़ौमी हो गया नक़्श-ए-सुलैमानी मुझे
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
उठी जाती है दिल से हैबत-ए-आलाम-ए-रूहानी
जराहत बहर-ए-क़ल्ब-ए-ज़ार मरहम होती जाती है
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
उफ़ भी कर सकता नहीं अब करवटें लेना कुजा
ज़ख़्म-ए-पहलू से है वो तकलीफ़-ए-रूहानी मुझे
यगाना चंगेज़ी
ग़ज़ल
दिखाए फिर न क्यूँ तासीर अपनी जज़्ब-ए-रूहानी
यक़ीं हो जाए जब हाजत-रवा है बिल-यक़ीं पत्थर
हबीब मूसवी
ग़ज़ल
ज़बाँ की चाशनी से तर-ब-तर ग़ज़लों को पढ़ता हूँ
ये रूहानी ग़िज़ा है हम जिसे मर्ग़ूब रखते हैं
फ़ैयाज़ रश्क़
ग़ज़ल
जब हिक़ारत से किसी को देखता है कोई शख़्स
क्या कहूँ होती है जो तकलीफ़-ए-रूहानी मुझे