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ग़ज़ल
सफ़-कशी अपनी दिखाता है मुझे क्या अशरार
याद है उस की सफ़-आराई-ए-मिज़्गाँ मुझ को
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
मोहब्बत चाहिए बाहम हमें भी हो तुम्हें भी हो
ख़ुशी हो इस में या हो ग़म हमें भी हो तुम्हें भी हो
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं
ख़ाक में क्या सूरतें होंगी कि पिन्हाँ हो गईं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
राज़-ए-सर-बस्ता मोहब्बत के ज़बाँ तक पहुँचे
बात बढ़ कर ये ख़ुदा जाने कहाँ तक पहुँचे