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ग़ज़ल
एक ये दिन जब अपनों ने भी हम से नाता तोड़ लिया
एक वो दिन जब पेड़ की शाख़ें बोझ हमारा सहती थीं
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
जज़्बात-ए-दिल की शिद्दत सहती हैं मेरी आँखें
गुल-रंग और शफ़क़-गूँ रहती हैं मेरी आँखें