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ग़ज़ल
प्रेम वारबर्टनी
ग़ज़ल
रंगों में 'शहबाज़' ख़ुशी का रंग नुमायाँ था उस पर
मेरी सालगिरह पर जिस ने साँसों से बैलून भरे
शाहबाज़ नय्यर
ग़ज़ल
वो अपनी ख़ू न छोड़ेंगे हम अपनी वज़्अ क्यूँ छोड़ें
सुबुक-सर बन के क्या पूछें कि हम से सरगिराँ क्यूँ हो
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
दोनों संग-ए-राह-ए-तलब हैं राह-नुमा भी मंज़िल भी
ज़ौक़-ए-तलब हर एक क़दम पर दोनों को ठुकराता जा