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ग़ज़ल
मैं निज़ाम-ए-ज़र की देवी से 'क़तील' आश्ना हूँ
कहीं नाम उस का सलमा कहीं चन्द्रकान्ता है
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
अहमद सलमान
ग़ज़ल
है ज़माना इश्क़-ए-सलमा में गँवा दे ज़िंदगी
ये ज़माना फिर कहाँ ये ज़िंदगानी फिर कहाँ
अख़्तर शीरानी
ग़ज़ल
सदमा तो है मुझे भी कि तुझ से जुदा हूँ मैं
लेकिन ये सोचता हूँ कि अब तेरा क्या हूँ मैं
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
कभी तेरे ख़त को जला दिया कभी नाम लिख के मिटा दिया
ये मिरी अना का सवाल था तुझे याद कर के भुला दिया
सलमा हिजाब
ग़ज़ल
हुस्न-ए-नज़र-फ़रेब में किस को कलाम था मगर
तेरी अदाएँ आज तो दिल में समा के रह गईं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
जो दिख रहा उसी के अंदर जो अन-दिखा है वो शाइरी है
जो कह सका था वो कह चुका हूँ जो रह गया है वो शाइरी है
अहमद सलमान
ग़ज़ल
सलाम उस पे कि जिस ने उठा के पर्दा-ए-दिल
मुझी में रह के मुझी में समा के लूट लिया