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ग़ज़ल
जल्वा पाबंद-ए-नज़र भी है नज़र-साज़ भी है
पर्दा-ए-राज़ भी है पर्दा-दर-ए-राज़ भी है
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
नुमू के फ़ैज़ से रंग-ए-चमन निखर सा गया
मगर बहार में दिल शोरिशों से डर सा गया
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
वो नाज़ुक सा तबस्सुम रह गया वहम-ए-हसीं बन कर
नुमायाँ हो गया ज़ौक़-ए-सितम चीन-ए-जबीं बन कर
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
एक तुम ही नहीं दुनिया में जफ़ाकार बहुत
दिल सलामत है तो दिल के लिए आज़ार बहुत
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
रहगुज़र हो या मुसाफ़िर नींद जिस को आए है
गर्द की मैली सी चादर ओढ़ के सो जाए है
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
दिल वो काफ़िर कि सदा ऐश का सामाँ माँगे
ज़ख़्म पा जाए तो कम्बख़्त नमक-दाँ माँगे
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
शौक़ का तक़ाज़ा है शरह-ए-आरज़ू कीजे
दिल से अहद-ए-ख़ामोशी कैसे गुफ़्तुगू कीजे
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
शौक़ के ख़्वाब-ए-परेशाँ की हैं तफ़्सीरें बहुत
दामन-ए-दिल पर उभर आई हैं तस्वीरें बहुत
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
दौर-ए-तूफ़ाँ में भी जी लेते हैं जीने वाले
दूर साहिल से किसी मौज-ए-गुरेज़ाँ की तरह