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ग़ज़ल
है ये शहर-ए-इश्क़ याँ आब-ओ-हवा कुछ और है
सुर्ख़ रंगत है ज़मीं की और फ़ज़ा कुछ और है
इफ़्फ़त अब्बास
ग़ज़ल
दो अश्क जाने किस लिए पलकों पे आ कर टिक गए
अल्ताफ़ की बारिश तिरी इकराम का दरिया तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
दो बोल दिल के हैं जो हर इक दिल को छू सकें
ऐ 'अश्क' वर्ना शेर हैं क्या शाइरी है क्या
इब्राहीम अश्क
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
हम से जिस के तौर हों बाबा देखोगे दो एक ही और
कहने को तो शहर-ए-कराची बस्ती दिल-ज़दगाँ की है
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
अर्ज़-ए-नियाज़-ए-शौक़ से था बे-नियाज़ दिल
मुल्क-ए-हवस में 'अश्क' अकेला ही मस्त था
इब्राहीम अश्क
ग़ज़ल
ऐ सख़ियो ऐ ख़ुश-नज़रो यक गूना करम ख़ैरात करो
नारा-ज़नाँ कुछ लोग फिरें हैं सुब्ह से शहर-ए-निगार के बीच