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ग़ज़ल
तू हुमा का है शिकारी अभी इब्तिदा है तेरी
नहीं मस्लहत से ख़ाली ये जहान-ए-मुर्ग़-ओ-माही
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मोहज़्ज़ब लोग भी समझे नहीं क़ानून जंगल का
शिकारी शेर भी कव्वों का हिस्सा छोड़ देते हैं
अब्बास दाना
ग़ज़ल
उस ने घायल भी किया तो कैसे पत्थर से 'नसीम'
फूल का तोहफ़ा मुझे मेरा शिकारी दे गया