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ग़ज़ल
धुँदलाई हुई शामों में कोई परछाईं सी फिरती रहती है
मैं आहट सुनती हूँ जिस की वो वहम नहीं साया भी नहीं
फ़हमीदा रियाज़
ग़ज़ल
सितारे जागते हैं रात लट छटकाए सोती है
दबे पाँव किसी ने आ के ख़्वाब-ए-ज़िंदगी बदला
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
हम शब-ए-हिज्र में जब सोती है सारी दुनिया
ज़िक्र करते हैं तिरा छिटके हुए तारों से