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ग़ज़ल
हम और रस्म-ए-बंदगी आशुफ़्तगी उफ़्तादगी
एहसान है क्या क्या तिरा ऐ हुस्न-ए-बे-परवा तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ख़याल-ए-हुस्न-ए-बे-मिसाल दस्तरस में आ गया
ख़ुदी पे इख़्तियार मेरा पेश-ओ-पस में आ गया
जानी लखनवी
ग़ज़ल
बाग़ तक क्या कारवान-ए-हुस्न-ए-बे-परवा गया
बू परेशाँ है रुख़-ए-गुल को पसीना आ गया
अब्दुल अज़ीज़ फ़ितरत
ग़ज़ल
ऐसी आँखें तू ने दीं ऐ हुस्न-ए-जानाना मुझे
ज़र्रा ज़र्रा अब नज़र आता है बुत-ख़ाना मुझे
मुज़तर मुज़फ़्फ़रपूरी
ग़ज़ल
मताअ'-ए-हुस्न-ओ-जमाल-ओ-कमाल क्या क्या कुछ
चुरा के ले गए ये माह-ओ-साल क्या क्या कुछ