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ग़ज़ल
बातें हमारी याद रहें फिर बातें ऐसी न सुनिएगा
पढ़ते किसू को सुनिएगा तो देर तलक सर धुनिएगा
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
फ़र्त-ए-गिर्या से हुआ 'मीर' तबाह अपना जहाज़
तख़्ता पारे गए क्या जानूँ किधर पानी में
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
कहीं ज़ुल्मतों में घिर कर है तलाश-ए-दश्त-ए-रहबर
कहीं जगमगा उठी हैं मिरे नक़्श-ए-पा से राहें