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ग़ज़ल
'फ़ैज़' उन को है तक़ाज़ा-ए-वफ़ा हम से जिन्हें
आश्ना के नाम से प्यारा है बेगाने का नाम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
हदीस-ए-बादा-ओ-मीना-ओ-जाम आती नहीं मुझ को
न कर ख़ारा-शग़ाफ़ों से तक़ाज़ा शीशा-साज़ी का
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
इस हुस्न-ए-इत्तिफ़ाक़ पे लुट कर भी शाद हूँ
तेरी रज़ा जो थी वो तक़ाज़ा वफ़ा का था
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
तेरी महफ़िल तेरे जल्वे फिर तक़ाज़ा क्या ज़रूर
ले उठा जाता हूँ ज़ालिम ले चला जाता हूँ मैं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
तिरी नज़रों से गिर कर आज भी ज़िंदा हूँ मैं क्या ख़ूब
तक़ाज़ा है ये ग़ैरत का पशेमानी से मर जाऊँ
महशर आफ़रीदी
ग़ज़ल
मुमकिन है नाला जब्र से रुक भी सके अगर
हम पर तो है वफ़ा का तक़ाज़ा जफ़ा के ब'अद
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
इक ग़ज़ल उस पे लिखूँ दिल का तक़ाज़ा है बहुत
इन दिनों ख़ुद से बिछड़ जाने का धड़का है बहुत