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ग़ज़ल
नुमायाँ दोनों जानिब शान-ए-फ़ितरत होती जाती है
उन्हें मुझ से मुझे उन से मोहब्बत होती जाती है
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
ग़ज़ब है जुस्तजू-ए-दिल का ये अंजाम हो जाए
कि मंज़िल दूर हो और रास्ते में शाम हो जाए
शेरी भोपाली
ग़ज़ल
जोश-ए-वहशत में मुसल्लम हो गया इस्लाम-ए-इश्क़
कूचा-गर्दी से मिरी पूरा हुआ एहराम-ए-इश्क़
अबुल कलाम आज़ाद
ग़ज़ल
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
गिराँ था मत्न मुश्किल और भी ताबीर पढ़ लेना
तो आसाँ कर लिया दिल-ख़्वाह इक तफ़्सीर पढ़ लेना
मोहम्मद आज़म
ग़ज़ल
मैं ने राहत का ठिकाना अब तलक पाया नहीं
धूप की बारिश है लेकिन दूर तक साया नहीं
सय्यद महमूद अालम रहबर
ग़ज़ल
तुम यूँ ही समझना कि फ़ना मेरे लिए है
पर ग़ैब से सामान-ए-बक़ा मेरे लिए है