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ग़ज़ल
सभी सेहन-ए-चमन में फूल चुनने को नहीं आते
कुछ अपने दामनों में ख़ार उलझाने भी आते हैं
महशर बदायुनी
ग़ज़ल
मैं हूँ इक लम्हा-ए-मौजूद सीने से लगा मुझ को
कि माज़ी में दिल-ए-नादाँ को उलझाने नहीं जाते
मन्मोहन आलम
ग़ज़ल
तेरे फ़क़ीर को रस्ता चलते इज़्ज़त-ओ-ज़िल्लत में उलझाने
मंदिर से पूजाएँ दौड़ीं मस्जिद से फटकारें आईं
इज्तिबा रिज़वी
ग़ज़ल
रस्ता कुछ हमवार तो कुछ दुश्वार भी करते जाते हैं वो
इक दीवार गिराने तो इक नई उठाने आ जाते हैं
ज़फ़र इक़बाल
ग़ज़ल
करते हैं जिस पे ता'न कोई जुर्म तो नहीं
शौक़-ए-फ़ुज़ूल ओ उल्फ़त-ए-नाकाम ही तो है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
सबा अकबराबादी
ग़ज़ल
वो गुल हूँ ख़िज़ाँ ने जिसे बर्बाद किया है
उलझूँ किसी दामन से मैं वो ख़ार नहीं हूँ