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ग़ज़ल
वाए क़िस्मत पाँव की ऐ ज़ोफ़ कुछ चलती नहीं
कारवाँ अपना अभी तक पहली ही मंज़िल में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
जिसे कहती है दुनिया कामयाबी वाए नादानी
उसे किन क़ीमतों पर कामयाब इंसान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
रहा करते हैं क़ैद-ए-होश में ऐ वाए-नाकामी
वो दश्त-ए-ख़ुद-फ़रामोशी के चक्कर याद आते हैं
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
दो दिन में हम तो रीझे ऐ वाए हाल उन का
गुज़रे हैं जिन के दिल को याँ माह-ओ-साल बाँधे
मोहम्मद रफ़ी सौदा
ग़ज़ल
इल्म के दरिया से निकले ग़ोता-ज़न गौहर-ब-दस्त
वाए महरूमी ख़ज़फ़ चैन लब साहिल हूँ मैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ये पीरान-ए-कलीसा-ओ-हरम ऐ वा-ए-मजबूरी
सिला इन की कद-ओ-काविश का है सीनों की बे-नूरी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मदरसा या दैर था या काबा या बुत-ख़ाना था
हम सभी मेहमान थे वाँ तू ही साहब-ख़ाना था