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ग़ज़ल
हुस्न और उस पे हुस्न-ए-ज़न रह गई बुल-हवस की शर्म
अपने पे ए'तिमाद है ग़ैर को आज़माए क्यूँ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
न सवाल-ए-वस्ल न अर्ज़-ए-ग़म न हिकायतें न शिकायतें
तिरे अहद में दिल-ए-ज़ार के सभी इख़्तियार चले गए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
कभी जो आवारा-ए-जुनूँ थे वो बस्तियों में फिर आ बसेंगे
बरहना-पाई वही रहेगी मगर नया ख़ार-ज़ार होगा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
जल्वा ज़ार-ए-आतिश-ए-दोज़ख़ हमारा दिल सही
फ़ित्ना-ए-शोर-ए-क़यामत किस के आब-ओ-गिल में है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ज़ेर-ए-ज़मीं से आता है जो गुल सो ज़र-ब-कफ़
क़ारूँ ने रास्ते में लुटाया ख़ज़ाना क्या
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
क्यूँ न तश्बीह उसे ज़ुल्फ़ से दें आशिक़-ए-ज़ार
वाक़ई तूल-ए-शब-ए-हिज्र बला होता है
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
ग़ज़ल
वही आस्ताँ है वही जबीं वही अश्क है वही आस्तीं
दिल-ए-ज़ार तू भी बदल कहीं कि जहाँ के तौर बदल गए