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ग़ज़ल
वो सब से पहले मिरा ज़र्फ़ आज़मा के मिला
फिर इस के बा'द मिला तो नज़र झुका के मिला
शाद निम्बाहेड़ी
ग़ज़ल
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
लवें चराग़-ए-वफ़ा की बढ़ा के देखते हैं
हम अपना ज़र्फ़-ए-नज़र आज़मा के देखते हैं
मोहसिन उम्मीदी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
मुझ को भी बर्क़-ए-हुस्न किसी दिन दिखा के देख
मेरा भी ज़र्फ़-ए-इश्क़ ज़रा आज़मा के देख
वकील भोपाली
ग़ज़ल
ज़र्फ़-ए-ईज़ा-तलबी ग़म भी परख लें 'गौहर'
उस से इक रोज़ न मिलने का इरादा भी तो हो
गौहर होशियारपुरी
ग़ज़ल
सफ़र कहने को जारी है मगर अज़्म-ए-सफ़र ग़ाएब
ये ऐसा है कि जैसे घर से हों दीवार-ओ-दर ग़ाएब