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ग़ज़ल
ख़्वाबों की ता'बीर न ढूँडो ताबीरों से ख़्वाब बुनो
हर दिल को जो छू कर गुज़रे ये वो कहावत लगती है
सय्यद आशूर काज़मी
ग़ज़ल
वाक़िआ' ये है कि इंसान है मजबूर महज़
सानेहा ये है कि मुख़्तार कहावत है ज़रूर
तमीज़ुद्दीन तमीज़ देहलवी
ग़ज़ल
कोई सच्ची कहावत है मोहब्बत वो लड़ाई है
लड़े जो जीतने के शौक़ में कमज़ोर होता है
सादिया सफ़दर सादी
ग़ज़ल
ख़ुदाया किस के हम बंदे कहावें सख़्त मुश्किल है
रखे है हर सनम इस दहर में दावा ख़ुदाई का
मीर सोज़
ग़ज़ल
उसे बे-नुमू किसी ख़्वाब ने कहीं गहरी नींद सुला दिया
उसे भा गई हैं कहावतें उसे भी क़फ़स में सुकून है
नज्मुस्साक़िब
ग़ज़ल
ये क्या कि ज़ो'म-ए-क़ज़ावत में क़ैद कर लिया है
कोई तो ऐब निकालें जनाब दोषी में
मुकर्रम हुसैन आवान ज़मज़म
ग़ज़ल
कोई शाह कुइ गदा कहावे जैसा जिस का बना नसीब
जो कुछ हुआ तिसी पे ख़ुश रह नाँ इन लोगों सें होना क्या
आबरू शाह मुबारक
ग़ज़ल
आप की रात क्यों आँखों में कटी कुछ समझे
उस की लाठी में कहावत है कि आवाज़ नहीं
बिशन दयाल शाद देहलवी
ग़ज़ल
सज़ा मुझ को मिली थी जिस अदालत में वो तेरी थी
क़ज़ावत के सहीफ़ों पर तिरी तहरीर मिलती है