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ग़ज़ल
मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है
सर-ए-आईना मिरा अक्स है पस-ए-आईना कोई और है
सलीम कौसर
ग़ज़ल
कभी जो आवारा-ए-जुनूँ थे वो बस्तियों में फिर आ बसेंगे
बरहना-पाई वही रहेगी मगर नया ख़ार-ज़ार होगा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मैं तर्क-ए-रह-ओ-रस्म-ए-जुनूँ कर ही चुका था
क्यूँ आ गई ऐसे में तिरी लग़्ज़िश-ए-पा याद
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
मिरी आरज़ू की दुनिया दिल-ए-ना-तवाँ की हसरत
जिसे खो के शादमाँ थे उसे आज पा के रोए