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ग़ज़ल
दुनिया वालों के मंसूबे मेरी समझ में आए नहीं
ज़िंदा रहना सीख रहा हूँ अब घर की वीरानी से
मोहसिन असरार
ग़ज़ल
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
हम ने ताख़ीर से सीखे हैं मोहब्बत के उसूल
हम पे लाज़िम है, तिरा इश्क़ दोबारा कर लें
राना आमिर लियाक़त
ग़ज़ल
चुपके चुपके ग़म का खाना कोई हम से सीख जाए
जी ही जी में तिलमिलाना कोई हम से सीख जाए