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ग़ज़ल
सुंदर कोमल सपनों की बारात गुज़र गई जानाँ
धूप आँखों तक आ पहुँची है रात गुज़र गई जानाँ
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
दूर देस इक घर है अपना जैसे कोई इक सुंदर सपना
सपने में ख़ुद को पाता हूँ रात मुझे पागल करती है
कुमार पाशी
ग़ज़ल
ख़्वाब देखने वाली आँखें पत्थर होंगी तब सोचेंगे
सुंदर कोमल ध्यान तितलियाँ बे-पर होंगी तब सोचेंगे