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नज़्म
ख़ुर्दनी चीज़ों के चेहरों से टपकता है लहू
रूपये का रंग फ़क़ है अशरफ़ी है ज़र्द-रू
जोश मलीहाबादी
नज़्म
'हाफ़िज़' ये शाम को जो चेहरा है ख़ुद ही फ़क़ है
सूरज के डूबने से आकाश पर शफ़क़ है
हाफ़िज़ कर्नाटकी
नज़्म
मैं ने देखा कि धूप चौंकी
और भाग कर दरख़्तों की चोटियों पर चढ़ गई उस का रंग फ़क़ था