शब-बरात
क्यूँकर करे न अपनी नुमूदारी शब-बरात
चिलपक चपाती हलवे से है भारी शब-बरात
ज़िंदों की है ज़बाँ की मज़ेदारी शब-बरात
मुर्दों की रूह की है मदद-गारी शब-बरात
लगती है सब के दिल को ग़रज़ प्यारी शब-बरात
शक्कर का जिन के हलवा हुआ वो तो पूरे हैं
गुड़ का हुआ है जिन के वो उन से अधूरे हैं
शक्कर न गुड़ का जिन के वो परकट लंडूरे हैं
औरों के मीठे हलवे चपाती को घूरे हैं
उन की न आधी-पाओ न कुछ सारी शब-बरात
दुनिया की दौलतों में जो ज़रदार हैं बड़े
क़ंदों के हलवे रोग़नी नानें लिए खड़े
पहुँचाए ख़्वान फिरते हैं नौकर कई पड़े
ज़िंदे भी राह तकते हैं मुर्दे भी हैं खड़े
इन ख़ूबियों को रखती है तय्यारी शब-बरात
ठिलियां चपाती हलवे की तो सब में चाल है
अदना ग़रीब के तईं ये भी मुहाल है
काले से गुड़ की लिपटी कढ़ी की मिसाल है
पानी से हाँडी गेहूँ की रोटी भी लाल है
करती है ऐसी दुखिया पंसारी शब-बरात
और मुफ़लिसों की है ये तमन्ना की फ़ातिहा
दरिया पे जा के देते हैं बाबा की फ़ातिहा
भटियारी के तनूर प नाना की फ़ातिहा
हलवाई की दुकान पे दादा की फ़ातिहा
याँ तक तो उन पे लाती है नाचारी शब-बरात
वारिस हैं जिन के जीते वो मुर्दे भी आन कर
हलवे चपाती ख़ूब ही चखते हैं पेट-भर
जिन का कोई नहीं है वो फिरते हैं दर-ब-दर
औरों के लगते फिरते हैं कोनों से घर-ब-घर
उन की है खारी नून से भी खारी शब-बरात
मुल्ला जो देने फ़ातिहा घर घर में जाते हैं
हलवा कहीं कहीं वो चपाती उड़ाते हैं
मुफ़्लिस कोई बुलावे तो मुँह को छुपाते हैं
शक्कर का हलवा सुनते ही बस दौड़े जाते हैं
कहते हुए ये दिल में अहा-हा री शब-बरात
छोड़े है लट्टू तोंबड़ी हर-दम बना के जो
हाकिम का प्यादा कहता है यूँ उस से तल्ख़ हो
कपड़े बदन बचा के जो चाहो सो छोड़ दो
छप्पर जलाओगे तो दिलावेगी सुब्ह को
तुम से चबूतरे में गुनहगारी शब-बरात
फिरते हैं इश्क़-बाज़ जो लड़के की घात में
टोंटा ही ले के देते हैं लड़के के हाथ में
महताबी आ के छोड़ें हैं लड़के जो रात में
क्या ज़रकियाँ सी छोड़े हैं हँस हँस के बात में
करती है काम उन के भी यूँ जारी शब-बरात
जो रंडी-बाज़ हैं वो बहुत दिल में शाद हो
क्या क्या अनार छोड़े हैं बिशनी हो रू-ब-रू
ऐ बी तुम अपनी कुल्हिया हमें छोड़ने को दो
और चाहो तुम हमारा ये हत-फूल छोड़ लो
हो जाए जिस के छुटते ही फुलवारी शब-बरात
और जो बहार-ए-हुस्न के हैं पाक-बाज़ यार
गुल-कारी छोड़े हैं जहाँ महबूब गुल-एज़ार
कहते हैं उन को देख के आँखों में कर के प्यार
क्या चाहिए मियाँ तुम्हें हत-फूल और अनार
तुम पर तो आप होती है अब वारी शब-बरात
घनचक्कर अपने दम में कहीं चर्ख़ खाते हैं
टोंटे हवाई सींक कहीं क़हक़हाते हैं
ज़ींपट-ज़पट पटाख़े कहीं ग़ुल मचाते हैं
लड़कों के बाँध ग़ोल कहीं लड़ने जाते हैं
करती है फिर तो ऐसी धुँवाधारी शब-बरात
आ कर किसी के सर पे छछूंदर लगी कड़ी
ऊपर से और हवाई की आ कर पड़ी छड़ी
हो गई गले का हार पटाख़े की हर लड़ी
पाँव से लिपटी शोर मचा कर क़लम तुड़ि
करती है फिर तो ऐसी सितमगारी शब-बरात
चेहरा किसी का जल गया आँखें झुलस गईं
छाई किसी की जल गईं बाहें झुलस गईं
टाँगें बचीं किसी की तो रानें झुलस गईं
मूँछें किसी की फुक गईं पलकें झुलस गईं
रखे किसी की दाढ़ी पे चिंगारी शब-बरात
कोई दोस्तों को दिल में समझता है अपने ग़ैर
कोई दुश्मनों से दिल का निकाले है अपना बैर
कहता है वाँ 'नज़ीर' भी आतिश की देख सैर
यारब तो सब की कीजियो बरसा-बरस की ख़ैर
बे-तरह कर रही है नुमूदारी शब-बरात
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