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नज़्म
है जिन्हें सब से ज़ियादा दावा-ए-हुब्बुलवतन
आज उन की वज्ह से हुब्ब-ए-वतन रुस्वा तो है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मस्त हूँ हुब्ब-ए-वतन से कोई मय-ख़्वार नहीं
मुझ को मग़रिब की नुमाइश से सरोकार नहीं
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
हो दर्द-ए-दिल में जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन फ़ुज़ूँ
'मफ़्तूँ' क़लम उठाओ कि पंद्रह अगस्त है
मफ़तूं कोटवी
नज़्म
हुब्ब-ए-क़ौमी का ज़बाँ पर इन दिनों अफ़्साना है
बादा-ए-उल्फ़त से पुर दिल का मिरे पैमाना है
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
राम और कृष्ण के जीवन से तुझे प्यार मगर
बादा-ए-हुब्ब-ए-मोहम्मद से भी सरशार मगर
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन दिल में निहाँ रखते हैं
मिस्ल-ए-ख़ूँ जोश ये रग रग में रवाँ रखते हैं
बर्क़ देहलवी
नज़्म
क्या ख़ुदा का ख़ौफ़ कैसा जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन
बरसर-ए-पैकार थे आपस में शैख़-ओ-बरहमन
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
कोह वही दमन वही दश्त वही चमन वही
फिर ये 'मजाज़' जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन को क्या हुआ