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दर्द-ए-दिल

MORE BYचकबस्त ब्रिज नारायण

    रोचक तथ्य

    1912

    दर्द है दिल के लिए और दिल इंसाँ के लिए

    ताज़गी बर्ग-ओ-समर की चमनिस्ताँ के लिए

    साज़-ए-आहंग-ए-जुनूँ तार-ए-रग-ए-जाँ के लिए

    बे-ख़ुदी शौक़ की बे-सर-ओ-सामाँ के लिए

    क्या कहूँ कौन हवा सर में भरी रहती है

    बे पिए आठ-पहर बे-ख़बरी रहती है

    हूँ शाइ'र वली हूँ हूँ एजाज़-ए-बयाँ

    बज़्म-ए-क़ुदरत में हूँ तस्वीर की सूरत हैराँ

    दिल में इक रंग है लफ़्ज़ों से जो होता है अयाँ

    लय की मुहताज नहीं है मिरी फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ाँ

    शौक़-ए-शोहरत हवस-ए-गर्मी-ए-बाज़ार नहीं

    दिल वो यूसुफ़ है जिसे फ़िक्र-ए-ख़रीदार नहीं

    और होंगे जिन्हें रहता है मुक़द्दर से गिला

    और होंगे जिन्हें मिलता नहीं मेहनत का सिला

    मैं ने जो ग़ैब की सरकार से माँगा वो मिला

    जो अक़ीदा था मिरे दिल का हिलाए हिला

    क्यूँ डराते हैं अबस गबरू मुसलमाँ मुझ को

    क्या मिटाएगी भला गर्दिश-ए-दौराँ मुझ को

    क्या ज़माना पे खुले बे-ख़बरी का मिरी राज़

    ताइर-ए-फ़िक्र में पैदा तो हो इतनी पर्वाज़

    क्यूँ तबीअ'त को हो बे-ख़ुदी-ए-शौक़ पे नाज़

    हज़रत-ए-अब्र के क़दमों पे है ये फ़र्क़-ए-नियाज़

    फ़ख़्र है मुझ को उसी दर से शरफ़ पाने का

    मैं शराबी हूँ उसी रिंद के मयख़ाने का

    दिल मिरा दौलत-ए-दुनिया का तलबगार नहीं

    ब-ख़ुदा ख़ाक-नशीनी से मुझे आर नहीं

    मस्त हूँ हुब्ब-ए-वतन से कोई मय-ख़्वार नहीं

    मुझ को मग़रिब की नुमाइश से सरोकार नहीं

    अपने ही दिल का पियाला पिए मदहोश हूँ मैं

    झूटी पीता नहीं मग़रिब की वो मय-नोश हूँ मैं

    क़ौम के दर्द से हूँ सोज़-ए-वफ़ा की तस्वीर

    मेरी रग रग से है पैदा तप-ए-ग़म की तासीर

    है मगर आज नज़र में वो बहार-ए-दिल-गीर

    कर दिया दिल को फ़रिश्तों ने तरब के तस्ख़ीर

    ये नसीम-ए-सहरी आज ख़बर लाई है

    साल गुज़रा मिरे गुलशन में बहार आई है

    क़ौम में आठ बरस से है ये गुलशन शादाब

    चेहरा-ए-गुल पे यहाँ पास-ए-अदब की है नक़ाब

    मेरे आईना-ए-दिल में है फ़क़त इस का जवाब

    उस के काँटों पे किया मैं ने निसार अपना शबाब

    काम शबनम का लिया दीदा-ए-तर से अपने

    मैं ने सींचा है उसे ख़ून-ए-जिगर से अपने

    हर बरस रंग पे आता ही गया ये गुलज़ार

    फूल तहज़ीब के खिलते गए मिटते गए ख़ार

    पत्ती पत्ती से हुआ रंग-ए-वफ़ा का इज़हार

    नौजवानान-ए-चमन बन गए तस्वीर-ए-बहार

    रंग-ए-गुल देख के दिल क़ौम का दीवाना हुआ

    जो था बद-ख़्वाह-ए-चमन सब्ज़ा-ए-बेगाना हुआ

    बू-ए-नख़वत से नहीं याँ के गुलों को सरोकार

    है बुज़ुर्गों का अदब इन की जवानी का सिंगार

    इल्म-ओ-ईमाँ की तरावत का दिलों में है गुज़ार

    धो गए चश्मा-ए-अख़लाक़ से सीनों के ग़ुबार

    रंग दिखलाती है यूँ दिल की सफ़ा यारों में

    रौशनी सुब्ह की जिस तरह हो गुलज़ारों में

    किस को मा'लूम थी इस गुलशन-ए-अख़्लाक़ की राह

    मैं ने फूलों को किया रंग-ए-वफ़ा से आगाह

    अब तो इस बाग़ पे है सब की मोहब्बत की निगाह

    जो कि पौदे थे शजर हो गए माशा-अल्लाह

    क्या कहूँ रंग-ए-जवानी में जो इस राग के थे

    बाग़बाँ हो गए गुलचीं जो मेरे बाग़ के थे

    गो कि बाक़ी नहीं कैफ़िय्यत-ए-तूफ़ान-ए-शबाब

    फँस के जंजाल में दुनिया के ये क़िस्सा हुआ ख़्वाब

    मस्त रहता है मगर अब भी दिल-ए-ख़ाना-ख़राब

    शाम को बैठ के महफ़िल में लुंढाता हूँ शराब

    नश्शा-ए-इल्म की उम्मीद पे जीने वाले

    सिमट आते हैं सर-ए-शाम से पीने वाले

    और ही रंग पे है आज बहार-ए-गुलशन

    सैर के वास्ते आए हैं अज़ीज़ान-ए-वतन

    फ़र्श आँखें किए बैठे हैं जवानान-ए-चमन

    दिल में तूफ़ान-ए-तरब लब पे मोहब्बत के सुख़न

    कौन है आज जो इस बज़्म में मसरूर नहीं

    रूह-ए-सरशार भी खिंच आए तो कुछ दूर नहीं

    मगर अफ़्सोस ये दुनिया है मक़ाम-ए-इबरत

    रंज की याद दिलाता है ख़याल-ए-राहत

    आज याद आती है उन फूलों की मुझ को सूरत

    खिलते ही कर गए जो मेरे चमन से रेहलत

    चश्म-ए-बद-दूर गुलों की ये भरी डाली है

    चंद फूलों की मगर इस में जगह ख़ाली है

    ये वो गुल थे जिन्हें अरबाब-ए-नज़र ने रोया

    भाई ने बहनों ने मादर ने पिदर ने रोया

    ख़ाक रोना था जो इस दीदा-ए-तर ने रोया

    मुद्दतों इन को मिरे क़ल्ब-ओ-जिगर ने रोया

    दिल के कुछ दाग़-ए-मोहब्बत हैं निशानी उन की

    बचपना देख के देखी जवानी उन की

    ख़ैर दुनिया में कभी सोज़ है और कभी है साज़

    नौनिहालान-ए-चमन की रहे अब उम्र दराज़

    भाई से बढ़ के मुझे हैं ये मेरे माया-नाज़

    मेरे मोनिस हैं यही और यही मेरे हमराज़

    मर के भी रूह मिरी दिल की तरह शाद रहे

    मैं रहूँ या रहूँ ये चमन आबाद रहे

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