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नज़्म
मैं पल दो पल का शा'इर हूँ पल दो पल मिरी कहानी है
पल दो पल मेरी हस्ती है पल दो पल मिरी जवानी है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
है ''ज़'' बाज़ार में तो दरमियाँ 'ज़रयून' में अव्वल
तो ये इब्राफ़नीक़ी खेलते हर्फ़ों से थे हर पल
जौन एलिया
नज़्म
अब कोई घड़ी पल सा'अत में ये खेप बदन की है कफ़नी
क्या थाल कटोरी चाँदी की क्या पीतल की ढिबिया-ढकनी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
कि जिन में दोस्तों के साथ के पल याद आते हैं
वो कैसे लोग होते हैं जिन्हें हम दोस्त कहते हैं
इरफ़ान अहमद मीर
नज़्म
और जब याद की बुझती हुई शम्ओं में नज़र आया कहीं
एक पल आख़िरी लम्हा तिरी दिलदारी का