aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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अब यहाँ कोई नहीं कोई नहीं आएगा
अरे ये देखता है क्याउठा सुबू सुबू उठा
ये वक़्त नहीं फिर आएगातुम अपनी करनी कर गुज़रो
दर्द आएगा दबे पाँव लिए सुर्ख़ चराग़वो जो इक दर्द धड़कता है कहीं दिल से परे
ये हसीं खेत फटा पड़ता है जौबन जिन का!किस लिए इन में फ़क़त भूक उगा करती है
तुम आ के तिनके से मुझ को बाहर निकाल लेना''कोई नहीं आएगा ये कीड़े निकालने अब
ख़ुश थे हम अपनी तमन्नाओं का ख़्वाब आएगाअपना अरमान बर-अफ़गन्दा-नक़ाब आएगा
मैं तिरे सामने अम्बार लगा दूँ लेकिनकौन से रंग का पत्थर तिरे काम आएगा
आओ कि जश्न-ए-मर्ग-ए-मोहब्बत मनाएँ हम!सोचा न था कि आएगा ये दिन भी फिर कभी
उसी कूचे में जहाँ चाँद उगा करते हैंशब-ए-तारीक गुज़ारूँगा, चला जाऊँगा
रेंगते वक़्त के मानिंद कभीलौट के आएगा हसन कूज़ा-गर-ए-सोख़्ता-जाँ भी शायद!
दिन निकल आएगाग़म न कर, ग़म न कर
सुब्ह तक ढल के कोई हर्फ़-ए-वफ़ा आएगाइश्क़ आएगा ब-सद लग़्ज़िश-ए-पा आएगा
बेवफ़ाई की घड़ी, तर्क-ए-मदारात का वक़्तइस घड़ी अपने सिवा याद न आएगा कोई
हाथ के एक इशारे से पानी में आग लगा सकता हूँराख के ढेर से ताज़ा रंगों वाले फूल उगा सकता हूँ
फ़स्ल-ए-गुल आएगी नमरूद के अँगार लिएअब न बरसात में बरसेगी गुहर की बरखा
जब भी गाएगी कोई ग़ैरत-ए-नाहीद ग़ज़लसब को आएगा नज़र शोला-ए-आवाज़ में तू
फिर इक दिन ऐसा आएगाआँखों के दिए बुझ जाएँगे
नेक मादाम बहुत जल्द वो दौर आएगाजब हमें ज़ीस्त के अदवार परखने होंगे
तेरी इक मुश्त-ए-ख़ाक के बदलेलूँ न हरगिज़ अगर बहिश्त मिले
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