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नज़्म
मैं वो इक लाल हूँ जो बिक गया बाज़ारों में
फिर कोई पूछने मुझ को न यमन से आया
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
किर्म-ए-फ़रामोशी ने देखो चाट लिए कितने मीसाक़
वो भी हम को रो बैठे हैं चलो हुआ क़र्ज़ा बे-बाक़
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
तदबीरें सारी कर चुके बातों के दरिया बह चुके
बक बक से अब क्या फ़ाएदा मेहनत करो मेहनत करो
मोहम्मद हुसैन आज़ाद
नज़्म
'ज़ेहरा' ने बहुत दिन से कुछ भी नहीं लिक्खा है!
दीवानी नहीं इतनी जो मुँह में हो बक जाए
ज़ेहरा निगाह
नज़्म
मुश्तइल, बे-बाक मज़दूरों का सैलाब-ए-अज़ीम!
अर्ज़-ए-मश्रिक, एक मुबहम ख़ौफ़ से लर्ज़ां हूँ मैं
नून मीम राशिद
नज़्म
काश हम बिक के भी इस जिंस-ए-गिराँ को पा लें
ख़ुद भी खो जाएँ पर इस रम्ज़-ए-निहाँ को पा लें
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नज़्म
ज़ीस्त का और मौत का इदराक दुनिया को न था
ज़ुल्म का एहसास जब बे-बाक दुनिया को न था