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नज़्म
और नए जोड़ों की ख़ुशियों में छुपा जो कर्ब है वो भी हूँ मैं
फ़ीस में स्कूल की कापी किताबों में भी मैं
शकील आज़मी
नज़्म
हो फ़ीस मुक़द्दमा लड़ने की या रिश्वत ठेका देने की
हर एक डिमांड करे केवल दो नंबर में ही लेने की
सदा अम्बालवी
नज़्म
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
मिरी जाँ अब भी अपना हुस्न वापस फेर दे मुझ को
अभी तक दिल में तेरे इश्क़ की क़िंदील रौशन है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये कैसा फेर है तक़दीर का ये फेर तो शायद नहीं लेकिन
ये फैला आसमाँ उस वक़्त क्यूँ दिल को लुभाता है