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नज़्म
मजीद अमजद
नज़्म
मैं उस आँख की झील में तैरते सब्ज़ बजरे
की दर्ज़ों से रिसते हुए गर्म सय्याल सोने की बूंदों
वज़ीर आग़ा
नज़्म
तू बधिया लादे बैल भरे जो पूरब पच्छम जावेगा
या सूद बढ़ा कर लावेगा या टूटा घाटा पावेगा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
साक़ी फ़ारुक़ी
नज़्म
ये हर इक सम्त पुर-असरार कड़ी दीवारें
जल-बुझे जिन में हज़ारों की जवानी के चराग़